चंडिकादास अमृतराव (नानाजी) देशमुख
जीवन परिचय
चंडिकादास अमृतराव (नानाजी) देशमुख जी का जन्म 11 अक्टूबर ईस्वी सन् 1916 को शरद पूर्णिमा के दिन महाराष्ट्र के परभणी जिले के कडोली नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख था। आपका प्रारंभिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा तथा अपनी लगन एवं दृढ निश्चय से आपने बिरला विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान, पिलानी से उच्च शिक्षा प्राप्त की। नानाजी ने अविवाहित रहकर आजीवन समाज की सेवा की। सन् 1934 में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से जुड़ कर आप प्रचारक बने। सन् 1950 में उत्तर प्रदेश प्रांत प्रचारक रहते हुए गोरखपुर में प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की, जिसकी पूरे देश में लगभग 30 हजार से अधिक शाखायें संचालित हो रही हैं। 1948-51 के दौरान राष्ट्रधर्म प्रकाशन के प्रबंध निदेशक के पद पर रहते हुए नानाजी ने राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका, पांचजन्य साप्ताहिक तथा स्वदेश समाचार पत्र का प्रकाशन किया। आप भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य तथा तीन वर्ष तक संगठन मंत्री रहे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रणीत एकात्म मानववाद को मूर्त रूप देने के लिए नानाजी ने 1968 में नई दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान (डी.आर.आई.) की स्थापना की। आप सन् 1974 में जय प्रकाश नारायण के आव्हान पर संपूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रमुख संगठक तथा सन् 1977 में केंद्र की सत्ता में आई जनता पार्टी सरकार के शिल्पकारों में से एक थे। आप बलरामपुर (उ.प्र.) लोकसभा सीट से विजयी होकर लोकसभा सदस्य बने, किंतु आपने मोरारजी भई देसाई की सरकार में मंत्रिपद स्वीकार नहीं किया।
1980 में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर नानाजी ने एकात्म मानववाद के आधार पर ग्रामीण भारत के विकास की रूपरेखा रखी। शुरूआती प्रयोगों के बाद उन्होने उत्तर प्रदेश, बिहार, मराठबाड़ा महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में जनसहयोग व भागीदारी से कई गांवों का पुर्ननिर्माण किया।
नानाजी ने 1991 में देश के प्रथम ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना चित्रकूट में की, जिसका नाम महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय रखा गया। नानाजी तीन वर्षो तक इस विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलाधिपति रहे। नानाजी देशमुख को भारतवर्ष के कई विश्वविद्यालयों, जैसे पुणे विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय, बुदेलखंड विश्वविद्यालय, बड़ोदा विश्वविद्यालय एवं चि़त्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट. की मानद् उपाधि से सम्मानित किया गया। भारतीय ग्रामीण तथा सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए आपको सन् 1999 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया एवं राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिये मनोनीत किया गया। नानाजी द्वारा चित्रकूट परियोजना एवं आत्म निर्भरता के लिए अभियान की शुरूआत 26 जनवरी, 2002 में चित्रकूट में की गयी, जिसका उद्देष्य चित्रकूट के आसपास के 500 चयनित ग्रामों को आत्मनिर्भर बनाना था। इस संस्थान की मदद से प्रथम चरण में 80 गावों को आत्मनिर्भर मुकदमा मुक्त विवाद सुलझाने का आदर्श बनाया गया। 15 अगस्त, 2005 को इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता मिली। कुल 512 चयनित ग्रामों में शेष बचे 432 गांव 27 फरवरी, 2011 को आत्मनिर्भर घोषित कर लोकार्पित किए गये। नवदधीच राष्ट्रसंत जैसे महान सपूत नानाजी ने मृत्यु उपरांत अपना शरीर चिकित्सकीय शोध के लिए दान कर दिया था। नानाजी 95 वर्ष की उम्र में ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट में 27 फरवरी, 2010 को ब्रम्हलीन हो गए।
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